चाणक्य नीति: 100 गुणों के बराबर है व्यक्ति का ये एक अवगुण, तुरंत कर देना चाहिए त्याग

आचार्य चाणक्य एक महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और रणनीतिकार थे। उन्हें जीवन के हर एक पहलु का ज्ञान था। अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर उन्होंने एक साधारण बालक चंद्रगुप्त को मौर्य वंश का सम्राट बना दिया था। माना जाता है कि आचार्य चाणक्य में किसी भी परिस्थिति को पहले से भांपने की क्षमता थी।

आचार्य ने अपने अनुभवों के आधार पर लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए अपनी नीतियों को नीति शास्त्र में वर्णित किया है। चाणक्य नीति के एक श्लोक के जरिए आचार्य बताते हैं कि व्यक्ति के 100 गुणों के बराबर उसका एक अवगुण होता है। जानिए क्या कहती है आज की चाणक्य नीति-

अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्,
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात।

इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी भी काम में सफल होने के लिए मन पर कंट्रोल होना बेहद जरूरी है। जिसका मन स्थिर नहीं होता है उस व्यक्ति को न लोगों के बीच चैन मिलता है और न ही वन में। ऐसे व्यक्ति लोगों के बीच होने पर जलन भावना रखते हैं और वन में अकेलापन महसूस करते हैं।

चाणक्य का मानना है कि चंचल मन को काबू करना बेहद जरूरी है। अगर मन पर वश होता है तो व्यक्ति जीवन में कुछ भी हासिल कर सकता है। इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है कि मन के जीते जीत है और मन के हारे हार। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि अगर आपने मन पर विजय प्राप्त कर ली तो उसे जीतना मुश्किल नहीं है, लेकिन मन के मुताबिक काम करने वाले जीवन में सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं। इसलिए किसी भी सपने को पूरा करने के लिए मन पर काबू होना जरूरी है।

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